संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ आशà¥à¤°à¤® की महतà¥à¤¤à¤¾ पर संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ का उपदेश
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Manmohan Kumar AryaDate
10-Jan-2016Language
HindiTotal Views
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UmeshUpload Date
30-Nov-2015Download PDF
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महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ के पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में से à¤à¤• गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¤µà¤¿à¤§à¤¿ है। इस गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वेदों पर आधारित 16 संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ का वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¨ किया है। इस वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¨ में सà¤à¥€ संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के सà¥à¤µà¤°à¥‚प का वरà¥à¤£à¤¨ करने के साथ उनकी विधि वा पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ à¤à¥€ दी गई है। संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¤µà¤¿à¤§à¤¿ से ही हम उनके संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ आशà¥à¤°à¤® पर उपदेश को पाठकों के लाठहेतॠसमà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ के साथ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ कर रहे हैं।
‘संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸-संसà¥à¤•à¤¾à¤°’ उसे कहते हैं कि जिसमें मोह आदि आवरण व पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤ छोड़ कर तथा विरकà¥à¤¤ होकर सब पृथिवी में परोपकारà¥à¤¥ विचरण किया करते हैं। पà¥à¤°à¤¥à¤® वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥ आशà¥à¤°à¤® के पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग में जो बताया गया है कि बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ पूरा करके गृहसà¥à¤¥ और गृहसà¥à¤¥ होके वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥ तथा वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥ होके संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ होवे, यह कà¥à¤°à¤® संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸, अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ अनà¥à¤•à¥à¤°à¤® से आशà¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ का अनà¥à¤·à¥à¤ ान करता-करता वृदà¥à¤§à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में जो संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लेना है, उसी को ‘कà¥à¤°à¤®-संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸’ कहते हैं। संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ का दूसरा पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° यह है कि जिस दिन दृढ़ वैरागà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो, उसी दिन चाहे वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥ का समय पूरा à¤à¥€ न हà¥à¤† हो, अथवा वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥ आशà¥à¤°à¤® का अनà¥à¤·à¥à¤ ान न करके गृहाशà¥à¤°à¤® से ही संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® गà¥à¤°à¤¹à¤£ करें कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ में दृढ़ वैरागà¥à¤¯ और यथारà¥à¤¥ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का होना ही मà¥à¤–à¥à¤¯ कारण है। संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ आशà¥à¤°à¤® का तीसरा पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° यह है कि यदि पूरà¥à¤£ अखणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯, सचà¥à¤šà¤¾ वैरागà¥à¤¯ और पूरà¥à¤£ जà¥à¤žà¤¾à¤¨-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होकर विषयासकà¥à¤¤ की इचà¥à¤›à¤¾ आतà¥à¤®à¤¾ से यथावतॠउठजावे, पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤à¤°à¤¹à¤¿à¤¤ होकर सबके उपकार करने की इचà¥à¤›à¤¾ होवे और जिसको दृढ़ निशà¥à¤šà¤¯ हो जावे कि मैं मरण-पà¥à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¤ यथावतॠसंनà¥à¤¯à¤¾à¤¸-धरà¥à¤® का निरà¥à¤µà¤¾à¤¹ कर सकूंगा तो वह न गृहाशà¥à¤°à¤® करे न वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤®, किनà¥à¤¤à¥ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® को पूरà¥à¤£ करके संनà¥à¤¯à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® को गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर लेवे।
वेदों में संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ आशà¥à¤°à¤® गà¥à¤°à¤¹à¤£ करने के पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ उपलबà¥à¤§ हैं। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ जी ने संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¤µà¤¿à¤§à¤¿ में वेदों के 11 पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ दिये हैं। लेख की सीमा के कारण हम यहां पà¥à¤°à¤¥à¤® दो पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ के ही उनके किये हà¥à¤ हिनà¥à¤¦à¥€ अरà¥à¤¥ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ कर रहे हैं। वह वेद मनà¥à¤¤à¥à¤° का शबà¥à¤¦à¤¾à¤°à¥à¤¥ करते हà¥à¤ कहते हैं कि ‘मैं ईशà¥à¤µà¤° संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लेनेवाले तà¥à¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को उपदेश करता हूं कि जैसे मेघ का नाश करनेवाला सूरà¥à¤¯ हिंसनीय पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ à¤à¥‚मितल में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ सोमरस को पीता है, वैसे संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लेनेवाला पà¥à¤°à¥à¤· उतà¥à¤¤à¤® मूल, फलों के रस को पीवे और अपने आतà¥à¤®à¤¾ में बड़े सामथà¥à¤°à¥à¤¯ को उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करूंगा, à¤à¤¸à¥€ इचà¥à¤›à¤¾ करता हà¥à¤† दिवà¥à¤¯ बल को धारण करता हà¥à¤† परमैशà¥à¤µà¤°à¥à¤¯ के लिà¤, हे चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤®à¤¾ के तà¥à¤²à¥à¤¯ सबको आननà¥à¤¦à¤¿à¤¤ करनेहारे पूरà¥à¤£ विदà¥à¤µà¤¨à¥ ! तू संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लेके सब पर सतà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ की वृषà¥à¤Ÿà¤¿ कर।’ हे सोमगà¥à¤£ समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ सतà¥à¤¯ से सबके अनà¥à¤¤à¤ƒà¤•à¤°à¤£ को सींचनेवाले, सब दिशाओं में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सचà¥à¤šà¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ देके पालन करनेवाले, शमादिगà¥à¤£à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤¨à¥ ! यथारà¥à¤¥ बोलने, सतà¥à¤¯à¤à¤¾à¤·à¤£ करने से सतà¥à¤¯ के धारण में सचà¥à¤šà¥€ पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿ और पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¾à¤¯à¤¾à¤®, योगाà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ से, सरलता से निषà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होता हà¥à¤† अपने शरीर, इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯, मन, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ को पवितà¥à¤° कर। परमैशà¥à¤µà¤°à¥à¤¯à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ परमातà¥à¤®à¤¾ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठसब पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ कर।
वेदों के पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करने के बाद महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ जी ने मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ के 23 शà¥à¤²à¥‹à¤• पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ कर उनके अरà¥à¤¥ दिये गये हैं जिनमें से 17 शà¥à¤²à¥‹à¤•à¥‹à¤‚ के अरà¥à¤¥ लेख की सीमा को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखकर पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ हैं। यह अरà¥à¤¥ कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° कहे हैं। (वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥) काल में जंगलों में आयॠका तीसरा à¤à¤¾à¤—, अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ अधिक-से-अधिक पचà¥à¤šà¥€à¤¸ वरà¥à¤· अथवा नà¥à¤¯à¥‚न-से-नà¥à¤¯à¥‚न बारह वरà¥à¤· तक विहार करके आयॠके चैथे à¤à¤¾à¤—, अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सतà¥à¤¤à¤° वरà¥à¤· के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ सब मोह आदि संगों (परिवार आदि संबंधों) को छोड़कर संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ हो जावे।।1।। विधिपूरà¥à¤µà¤• बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® में सब वेदों को पढ़, गृहाशà¥à¤°à¤®à¥€ होकर धरà¥à¤® से पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ कर, वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥ में सामथà¥à¤°à¥à¤¯ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° यजà¥à¤ž करके मोकà¥à¤·, अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® में मन को लगाये।।2।। पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ परमातà¥à¤®à¤¾ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के निमितà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ कि जिसमें यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ और शिखा को तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया जाता है, इनका तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर आहà¥à¤µà¤¨à¥€à¤¯, गारà¥à¤¹à¤ªà¤¤à¥à¤¯ और दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾à¤—à¥à¤¨à¤¿ संजà¥à¤žà¤• अगà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को आतà¥à¤®à¤¾ में समारोपित करके, बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ गृहाशà¥à¤°à¤® से ही संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लेवे।।3।। जो पà¥à¤°à¥à¤· सब पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को अà¤à¤¯à¤¦à¤¾à¤¨, सतà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ देकर गृहशà¥à¤°à¤® से ही संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर लेता है, उस बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¥€, वेदोकà¥à¤¤ सतà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶à¤• संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ को मोकà¥à¤·à¤²à¥‹à¤• और सब लोक-लोकानà¥à¤¤à¤° तेजोमय-जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤®à¤¯ हो जाते हैं।।4।। जब सब कामों (इचà¥à¤›à¤¾à¤“ं, कामनाओं आदि) को जीत लेवे और उनकी अपेकà¥à¤·à¤¾ न रहे, पवितà¥à¤°à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ और पवितà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤ƒà¤•à¤°à¤£ और मननशील हो जावे तà¤à¥€ गृहाशà¥à¤°à¤® से निकलकर संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® का गà¥à¤°à¤¹à¤£ करे अथवा बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ ही से संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ का गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर लेवे।।5।।
वह संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ अनगà¥à¤¨à¤¿à¤ƒ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ आहà¥à¤µà¤¨à¥€à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ अगà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से रहित और कहीं अपना सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¿à¤®à¤¤ घर (मठ, आशà¥à¤°à¤® आदि) à¤à¥€ न बांधे और अनà¥à¤¨-वसà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¿ के लिठगà¥à¤°à¤¾à¤® का आशà¥à¤°à¤¯ लेवे। बà¥à¤°à¥‡ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की उपेकà¥à¤·à¤¾ करे और सà¥à¤¥à¤¿à¤°à¤¬à¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ व मननशील होकर परमेशà¥à¤µà¤° में अपनी à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ का समाधान करता हà¥à¤† विचरे।।6।। न तो अपने जीवन में आननà¥à¤¦ और न अपने मृतà¥à¤¯à¥ में दà¥à¤ƒà¤– माने, किनà¥à¤¤à¥ जैसे कà¥à¤·à¥à¤¦à¥à¤° à¤à¥ƒà¤¤à¥à¤¯ अपने सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ की आजà¥à¤žà¤¾ की बाट देखता रहता है, वैसे ही काल और मृतà¥à¤¯à¥ की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ करता रहे।।7।। चलते समय आगे-आगे देख के पग धरे। सदा वसà¥à¤¤à¥à¤° से छानकर जल पीवे। सबसे सतà¥à¤¯ वाणी बोले अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सतà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ ही किया करे। जो कà¥à¤› वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करे, वह सब मन की पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ से आचरण करे।।8।। इस संसार में आतà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤·à¥à¤ ा में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤, सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ अपेकà¥à¤·à¤¾à¤°à¤¹à¤¿à¤¤, मांस-मदà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ का तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी, आतà¥à¤®à¤¾ के सहाय से ही सà¥à¤–ारà¥à¤¥à¥€ होकर विचरा करे और सबको सतà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ करता रहे।।9।। सब शिर के बाल, दाढ़ी-मूंछ और नखों का समय-समय पर छेदन कराता रहे। पातà¥à¤°à¥€, दणà¥à¤¡à¥€ और कà¥à¤¸à¥à¤‚ठके रंगे हà¥à¤ वसà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को धारण किया करे। सब à¤à¥‚त-पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° को पीड़ा न देता हà¥à¤† दृढ़ातà¥à¤®à¤¾ होकर नितà¥à¤¯ विचरण करे।।10।।
जो संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ बà¥à¤°à¥‡ कामों से इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के निरोध, राग-दà¥à¤µà¥‡à¤·à¤¾à¤¦à¤¿ दोषों के कà¥à¤·à¤¯ और निरà¥à¤µà¥ˆà¤°à¤¤à¤¾ से सब पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ करता है, वह मोकà¥à¤· को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है।।11।। चाहे संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ को संसारी मूरà¥à¤– लोग निनà¥à¤¦à¤¾ आदि से दूषित वा अपमानित à¤à¥€ करें, तथापि वह धरà¥à¤® ही का आचरण करे। à¤à¤¸à¥‡ ही अनà¥à¤¯ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ आशà¥à¤°à¤® आदि के मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को करना उचित है। सब पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤à¤°à¤¹à¤¿à¤¤ होकर समबà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ रकà¥à¤–े--इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ उतà¥à¤¤à¤® काम करने ही के लिठसंनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® का विधान है, किनà¥à¤¤à¥ केवल दणà¥à¤¡à¤¾à¤¦à¤¿ चिनà¥à¤¹ धारण करना ही संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ धरà¥à¤® का कारण नहीं है।।12।। यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ निरà¥à¤®à¤²à¥€ वृकà¥à¤· का फल जल को शà¥à¤¦à¥à¤§ करनेवाला है तथापि उसके नामगà¥à¤°à¤¹à¤£à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° से जल शà¥à¤¦à¥à¤§ नहीं होता, किनà¥à¤¤à¥ उसको ले, पीस, जल में डालने ही से जल शà¥à¤¦à¥à¤§ होता है। वैसे नाममातà¥à¤° आशà¥à¤°à¤® से कà¥à¤› à¤à¥€ नहीं होता, किनà¥à¤¤à¥ अपने-अपने आशà¥à¤°à¤® के धरà¥à¤®à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ करà¥à¤® करने ही से आशà¥à¤°à¤®à¤§à¤¾à¤°à¤£ सफल होता है, अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ नहीं।।13।। इस पवितà¥à¤° संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ आशà¥à¤°à¤® को सफल करने के लिठसंनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ पà¥à¤°à¥à¤· विधिवतॠयोगशासà¥à¤¤à¥à¤° की रीति से सात वà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के पूरà¥à¤µ सात पà¥à¤°à¤£à¤µ लगा के (अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ ओं à¤à¥‚ः। ओं à¤à¥à¤µà¤ƒ ओं सà¥à¤µà¤ƒà¥¤ ओं महः ओं जनः। ओं तपः। ओं सतà¥à¤¯à¤®à¥à¥¤ बोलकरà¥), उसे मन से जपता हà¥à¤† तीन पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¾à¤¯à¤¾à¤® à¤à¥€ करे तो जानों अतà¥à¤¯à¥à¤¤à¥à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿ तप करता है।।14।। जैसे अगà¥à¤¨à¤¿ में तपाने से धातà¥à¤“ं के मल छूट जाते हैं वैसे ही पà¥à¤°à¤¾à¤£ के निगà¥à¤°à¤¹ से इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के दोष नषà¥à¤Ÿ हो जाते हैं।।5।। इसलिठसंनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ लोग पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¾à¤¯à¤¾à¤®à¥‹à¤‚ से मन व शरीरादि के दोषों को, धारणाओं से अनà¥à¤¤à¤ƒà¤•à¤°à¤£ के मैल को, पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤¾à¤¹à¤¾à¤° से संग से हà¥à¤ दोषों और धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से अविदà¥à¤¯à¤¾, पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤ आदि अनीशà¥à¤µà¤°à¤¤à¤¾ (नासà¥à¤¤à¤¿à¤•à¤¤à¤¾) के दोषों को छà¥à¤¡à¤¼à¤¾à¤•à¥‡ पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤à¤°à¤¹à¤¿à¤¤ आदि ईशà¥à¤µà¤° के गà¥à¤£à¥‹à¤‚ को धारण कर, सब दोषों को à¤à¤¸à¥à¤® कर देवे।।16।। जो अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤®à¥€ परमातà¥à¤®à¤¾ बड़े-छोटे पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ और अपà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में अशà¥à¤¦à¥à¤§ आतà¥à¤®à¤¾à¤“ं से देखने के योगà¥à¤¯ नहीं है, उस परमातà¥à¤®à¤¾ की गति व कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤¯à¥‹à¤— से ही संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ देखा करे।।17।।
सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने जीवन में संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ के सà¤à¥€ करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ व मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤“ं का पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤ªà¤£ से पालन किया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जो बातें वेद और मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ के आधार पर अपने वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¨ में कही हैं, उन सब का आचरण उनके जीवन में परिलकà¥à¤·à¤¿à¤¤ होता है। संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ आशà¥à¤°à¤® पर उनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¤µà¤¿à¤§à¤¿ में दिये गये पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ और मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ के अनà¥à¤¯ उपदेशों को जानने के लिठपाठक महानपà¥à¤à¤¾à¤µ कृपया संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¤µà¤¿à¤§à¤¿ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करें। वैदिक आशà¥à¤°à¤® वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ व सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है और शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ समाज, समà¥à¤¨à¥à¤¨à¤¤ देश व विशà¥à¤µ तथा मनà¥à¤·à¥à¤¯ की आतà¥à¤®à¤¾ की सरà¥à¤µà¤¾à¤‚गीण उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ व जीवन के चरम लकà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ धरà¥à¤®, अरà¥à¤¥, काम व मोकà¥à¤· की सफलता की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से रची गई है। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ काल से महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल तक यह आशà¥à¤°à¤® वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ अपने यथारà¥à¤¥ रूप में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ रही। उसके बाद इसमें हà¥à¤°à¤¾à¤¸ की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ जिसका कारण अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ व अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ का देश व समाज में पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° होना था। इसका परिणाम देश की पराधीनता व सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को नानाविध दà¥à¤ƒà¤– के रूप में हà¥à¤†à¥¤ यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ आशà¥à¤°à¤® का पालन कठिन अवशà¥à¤¯ है परनà¥à¤¤à¥ असंà¤à¤µ नहीं है। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ काल से असंखà¥à¤¯ व कोटिशः लोगों ने इसका पालन किया है। आज इसका परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ संखà¥à¤¯à¤¾ व यथारà¥à¤¥ रूप में पालन न होने से ही विशà¥à¤µ में सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° अशानà¥à¤¤à¤¿ व कà¥à¤²à¥‡à¤¶ का वातावरण है। आज à¤à¥€ आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ में सहसà¥à¤°à¥‹à¤‚ संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ हैं जो संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ धरà¥à¤® का पालन करते हà¥à¤ समाज व देश से अनà¥à¤§à¤•à¤¾à¤° दूर करने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ कर रहे हैं जिसके कारण वैदिक धरà¥à¤® व संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ जीवित है। लेख को विराम देने से पूरà¥à¤µ हम निवेदन करना चाहते हैं कि सà¤à¥€ बनà¥à¤§à¥à¤“ं को संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¤µà¤¿à¤§à¤¿ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ के अà¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤¯, गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ की आतà¥à¤®à¤¾ व गहराई को समà¤à¤¨à¤¾ चाहिये और अपने हित व अहित को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखकर जो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤¯ लगे उसे आचरण में लाना चाहिये।
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